बचपन की होली….
बचपन की होली ।
थी कितनी भोली ।
कभी न जाती भूली,
वो प्रेम की मीठी बोली ।।
भर- भर पिचकारी ।
चले हमारी गैंग सारी ।
एक दूजे को पकड़,
रंग से रंगते फिर भारी ।।
दिन भर खूब मचती ।
खुशियों की वो मस्ती ।
देख बचपन का आनन्द,
दुनिया लगती थी सस्ती ।।
जब हमारी टोली चलती ।
रंगों की होली बरसती ।
पहचान न चेहरे आते,
देख हमें जनता हँसती ।।
खेल खेल जब थकते ।
रंग से कोई न फिर बचते ।
यदि खत्म रंग हो जाता,
धूल मिट्टी में खूब लोटते ।।
वो बचपन की होली ।
खुशियाँ देती भर झोली ।
कभी न वो दिन भूलते,
जब सुनते थे मीठी बोली ।।
——जेपीएल