बचपन की यादें
वो बचपन का दौर,
वो घर की पौर ।
वो बचपन के खेल,
छुप्पन छुपाई
चोर- सिपाई ।
होठों से कट्टी,
उंगलियों मिलाने से फिर दोस्ती ।
बहुत याद आती है ।
बचपन की टोली,
और हंसी ठिठोली ।
कागज की नाव,
कागज का हवाई जहाज ।
पतंग के पेंच,
माचिस के टिक्के ।
वो साइकिल का पहिया,
कंचे का खेल ।
गुल्ली डण्डा,
होली का खेल ।
जरा सी बात पर रूठना,
एक टाफी में मान जाना ।
मन के राजा बन जाते
जिद पूरी करवाते ।
दिन भर शैतानी करना,
बाबा को देखकर ,
मां को गोद में छिप जाना।
बचपन की यादें ही है,
जीवन की सबसे मीठी यादें ।
बचपन की यादें
बहुत याद आती हैं ,
बहुत याद आती हैं ।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)