बचपन की यादें
मैं आज भी कभी कभी गुमसुम सा हो जाता हूं ,
इस दौड़ भरी जिंदगी में कहीं खो जाता हूं |
लौट आता हूं अपने बचपन में ,
नम आंखों संग कुछ पल जी लेता हूं |
वो स्कूल में घण्टी बजने से पहले ही
कन्धों पर बस्ता टांग लेना,
दोस्तों के लिए भाई से लड़ जाना !
वो तितलियों को पकड़ना
बहुत याद आता है,
बागों में जाकर लपाचू खेलना,
दोस्तों संग झूला झूलना
पतंग उड़ाना
किसे नहीं भाता है |
परीक्षाओं के बाद ननिहाल जाना,
अब कहां हो पाता है |
दादी-नानी की गोदी में सिर रखकर
कहानी सुनने का अवसर
अब न मिल पाता है |
– आनन्द कुमार
हरदोई (उत्तर प्रदेश)