बचपन की यादें
“बचपन के वो दिन कितने मस्त थे ,
बस स्कूल और दोस्तों के साथ व्यस्त थे !
न कोई टेंशन और न कोई जिम्मेदारी थी ,
होम वर्क और खेल के मैदान तक ही अपनी लाइफ सीमित थी !
तब तो त्यौहार मनाने का अंदाज भी कितना जुदा था ,
यारों के बिना होली दिवाली न्यू ईयर सब अधूरा था !
वो क्लास में लंच खोल कर खाना ,
और टीचर के डांटने पर भी मुँह पे ऊँगली रख कर बात करना !
बारिश की बूंदो को देख कागज की कश्ती बनाने लग जाना ,
और घंटी बजने से पहले बस्ता लेकर तैयार हो जाना !
सुबह सुबह मम्मी की प्यारी आवाज सुन कर उठना ,
और लंच जरूर कर लेना ये बोलकर स्कूल भेजना !
पापा से हर एक चीज़ की जिद करना ,
और शाम को उनके आने पे उस जिद को अपने पास पाना !
भैया से लड़ाई होने पे पापा के नाम पे धमकाना ,
और चोट लगने पर उन्ही भैया से लाड पाना !
वो छोटी छोटी बातों में ही हम इतने खुश रह लेते थे ,
अपनी छोटी सी दुनिया में ही जन्नत की सैर कर लेते थे !
मुश्किल है बचपन की यादों को दो शब्दों में समेट पाना ,
दो पल के लिए ही सही काश लौट आये वो बचपन का जमाना !”