बचपन की यादें
जीवन का स्वर्णकाल है बचपन,
आज मुझे बार -बार आता याद वो बचपन।
भाई बहन आपस में झगड़ते ,
तब पापा ले छड़ी दौड़ते,
देख छड़ी हम सब जाते भाग
मम्मी से पापा को पड़ती थी डाट।
जब भी आता होली त्योहार ,
गुझियां की होती बौछार,
आपस में मिलि होली खेलें,
सबके चेहरे में लगे गुलाल,
बचपन का वह अनोखा काल।
गांव में जब शिवरात्रि होती,
मंदिर में रामायण होती,
करते थे हम भी मानस पाठ,
बचपन का वो सुहावना काल।
नवरात्रि में प्रवचन होता ,
संतो संग मिलन तब होता,
सभी जाते थे प्रवचन सुनने,
लौटने पर पापा से पड़ती थी डाट,
बचपन का वह अनोखा काल।
कार्तिक और माघ का माह जब आता,
पूजन ,अर्चन में वह जाता,
सुबह उठ करते थे मानस का पाठ,
बचपन का वह अनोखा काल।
अनामिका तिवारी “अन्नपूर्णा “