बचपन की यादें
शीर्षक – बचपन की यादें
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सच तो बचपन की यादें होती हैं।
चाहत और मोहब्बत की बातें होती हैं।
न स्वार्थ न फरेब बचपन की यादें कहती हैं।
स्कूल कालेज का लड़कपन याद आता हैं।
वो टयूशन का नाम आंखों का लड़ाना याद हैं।
सच तो छेड़-छाड़ में बचपन की यादें रहतीं हैं।
हां हम सभी को बचपन की यादों में खो जाते हैं।
मैं बचपन की यादों में मन अक्सर खो जाता हैं।
बचपन की यादें ही तो जीवन का सच कहती हैं।
आओ एक बार फिर बचपन की यादों में चलते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र