बचपन की यादें
बचपन की यादें
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याद है मुझको ,जब में छोटा था,
बनकर घोड़ा मुझको अपनी,
पीठ में बिठाया था,
छुप-छुप कर खेले ,
क ई खेल तुमने थे-
जब में रोता तो साथ मेरे
तुम भी रोते थे।
जब में हंसता तो
तुम भी मेरे साथ हंसते थे।
मेरे पापा तुम मुझको,
बहुत रूलाते हो,
मुझको बहुत याद आते हो।
में सोचती हूं कि तुमको खोज लूं,
पर!तुम कहीं नजर नहीं आते–
मेरे पापा में तुमको कहां ढूड़ू।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर उ०प्र०