बचपन की यादें
जब ना हो पढ़ाई की परवाह,
निश्चित ना उस वक्त खाने का,
जब ना देना पड़े कोई भी अंजाम,
जब किया करते थे मनमानी,
जब दूध पीने को मिलते थे पैसे,
वो बचपना बहुत याद आता है हमें।
जब इंद्रधनुष को अवलोकन कर,
प्रचुर हर्षोत्फुल्ल होते थे हम,
जब हवाई जहाज को अवलोकन कर,
प्रचुर प्रफुल्लित होते थे हम,
और मनोरचना करते थे कि,
स्वयं हवाई जहाज में आसीन,
सैर कर रहे है हम,
वो दिन बहुत याद आता है हमें।
हमें दोस्तों के साहचर्य खेलना,
भ्रमण करना, बैठना व बातें करना ,
प्रचुर अच्छा लगता था,
लेकिन धाम जाने पर,
सुननी पड़ती पापा की डांट,
सुन डांट रो पड़ते है हम,
तब मम्मी का यूँ समझाना कि,
वह तो तुम्हारा हित चाहते हैं,
बिना बताए कहीं चले जाते हो,
अगर जरूरत पड़ी तो कहां ढूंढे़गें?
मम्मी का मेरे प्रति चिंता में हो ना,
बहुत याद आता है।
जब आता 26 जनवरी का दिन तो,
सुबह सुबह जगना, स्नान ध्यान करना,
यूनिफार्म पहन हाथों में झंडा ले,
चल देते थे स्कूल को,
वहां जाकर मस्तियां करना,
जब ना हो प्रोग्राम गलत होने का भय,
बेफिक्र होकर करते थे प्रोग्राम,
वो 26 जनवरी बहुत याद आता है हमें।
बचपन सभी को प्रिया होता है,
इसका एक सीधा और शानदान उदाहरण है-
आंखों के सामने कितने ही बच्चों को ,
जवान बनता देख कर भी ,
बचे हुए बच्चे जो चाहते हैं कि
वह बच्चे ही रहे,यही प्रमाण है कि
बचपन सभी को प्रिय है।
नाम :- उत्सव कुमार आर्या
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार