बचपन और कचौड़ी वाले बाबा का स्नेह
काश उकेर पाती उन सुनहरे पलो को
ज़हन मे बसी स्मृति की स्याही से
आज आंखें नम है
यादो का सैलाब उमड़ पड़ा है
आंखें बन्द कर रही हू
बचपन की तस्वीर बन रही है
बाबा के हाथों मे ज़ननत का स्वाद था
हर एक चीज़ मे माँ जैसा प्यार था
बाबा हर रोज खुश हो जाते थे
“रमन की लल्ली “आयी है बोल्के भीड़ मे भी
कचौड़ी समोसा दे देते थे ,
बेटा पैसे मत दे तेरा पापा दे जाता है
तु बस ले जा, स्कूल को देर हो जाएगी
कह कर काम मे लग जाते थे,
कभी करारी कचौड़ी करके देते थे
समोसा पे भी दही के आलू डाल देते थे,
वो घर का प्यार था ,बाबा की आंखों मे
दुलार था उनके हाथो मे ,
बाबा जहाँ भी चले गये हो मह्फ़ूज़ रहना
अपने बच्चो पे कृपा बनाये रखना !!
आपका लाड़ दुलार को भूल ना पायेगे
जब भी जलाली मे चौक से गुजरेगे
आपको ही पायेगे!! आपको ही पायेगे!!