बगुले ही बगुले बैठे हैं, भैया हंसों के वेश में
बगुले ही बगुले बैठे हैं, भैया हंसों के वेश में
सत्ता का संग्राम छिड़ा है, भैया अब इस देश में
मुख में है जनता की सेवा,देख रहे सत्ता की मेवा
सबकी कुर्सी पर नजर गढ़ी है, भैया अब तो देश में
बगुले ही बगुले बैठे हैं, भैया हंसों के वेश में
राजनीति बदनाम हो गई,गंदे इस परिवेश में
कुत्तों जैसे भोंक रहे हैं, ताकत सारी झोंक रहे हैं
असली मुद्दे गौण हो गए, सत्ता के इस खेल में
अपराधी कुर्सी पर बैठे, फरियादी हैं जेल में
बंदर जैसे उछल कूद कर,पाला रोज बदलते हैं
तन के उजले मन के काले, राजनीति में चलते हैं
सोन चिरैया ठगी ठगी है, भैया अब इस देश में
बगुले ही बगुले बैठे हैं, भैया अब इस देश में
फ़ी छाप संस्कृति वादों से, जनता को भटकाते हैं
सत्ता पर काबिज होकर,ये माल देश का खाते हैं
जाति पाती धर्म नस्ल पर, वैमनस्य फैलाते हैं
पहचान करो इन बगुलों की, भैया अब तो देश में
बगुले ही बगुले बैठे हैं, भैया हंसों के वेश में
सुरेश कुमार चतुर्वेदी