बकलोल
“बकलोल”
खून के रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं
सियासत में यहाँ पे भी झोल होते हैं !
भूख में सत्ता की सबक भूल जाते हैं
पिता और बेटों पर तोल मोल होते हैं !
कहते हैं कुछ मगर करते हैं कुछ और
वादे सबही इनके ढोल के पोल होते हैं !
करते नहीं कुछ भी बस एश करते है
इसीलिए चुनाव में पत्ते गोल होते हैं !
जबभी ज़रुरत पड़ती है इनके क्षेत्र में
नेताजी उस काल आसनसोल होते हैं !
एक दूजे से रहती है नफरत इतनी तो
भाषण सिर्फ इनके कडवे बोल होते हैं !
कुछ नेताओं को छोड़ कर ‘मिलन’ ये
सारे के सारे बिलकुल बकलोल होते हैं !!