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5 Feb 2019 · 1 min read

बंधन

विषय – बंधन!
विधा – छंद आधारित गीतिका
2122,2122, 2122, 2122

देह बंधन प्राण से मन पिंजरे में कैद साथी !
बदलते प्रिय रात दिन है जिंदगी में केंद साथी !!

आत्म पंछी दौड़ता कब हो घिरा जंजीर सारा,
जाल हैं परदेश का परतंत्रता में क़ैद साथी !

समझ बैठे भूल में संसार ही को आशियाना,
पाश डाला मोहिनी ने नैन ही में कैद साथी!!

जा रहे हैं संग छोड़े देश अपने आत्म ज्ञानी,
हूँ अकेला घेरती है रागिनी में कैद साथी!!

हो गया हैं मालिकों सा क्रूर मन ये मेरा न था,
अब तलक वादाखिलाफी से रहा में कैद साथी !

नाम का हैं खेल माया दाँव खाली हो रहे हैं ,
बंधनों से हार के कमजोर हूँ मैं कैंद साथी !

भेज दो संदेश ऐसा तोड़ बंधन आ रहा हूँ,
हाल मेरा देख लो सब दर्द ही में कैंद साथी!!

देह बंधन प्राण से मन पिंजरे में कैद साथी !
बदलते प्रिय रात दिन है जिंदगी में केंद साथी !!

छगन लाल गर्ग विज्ञ!

Language: Hindi
1 Like · 357 Views
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