बंधन
बंधन
एक मैं ही अकेली रह जाती हूं
बंधनों में बंधी!!!!
उदास , अकेली, तन्हा
चले जाते हैं सब
कोई पैसा कमाने
कोई पैसा लुटाने।
कान किसी आहट को ढूंढते
आंखें दरवाजे को तकती
खाली हो जाती है
आंसूओं से भी।
और खो जाता है मेरा वर्चस्व भी
समर्पित कर देती हूं मैं
सब कुछ
रिश्तों कों
घर को
और फिर एक दिन
मन के बंधन
तन पर दिखने लगते हैं
जब मैं भाग जाना चाहती हूं
तो
जबरदस्ती बांध दिया जाता है
पागल बना कर
मुझे आजादी चाहिए इन
बंधनों से
मैं ही अकेली क्यु बंधू
कोई बताये तो
सुरिंदर कौर