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1 Jul 2024 · 1 min read

बंधन खुलने दो(An Erotic Poem)

बदन से आज बदन को टकराने दो,
पट पटाती जो आती है आवाज उसे आने दो,
उजालों में बहुत कैद कर लिया मैंने खुद को,
अब इस अंधेरे में तो मुझे आजाद हो जाने दो,
जिस्म का एहसास जिस्म को होने दो,
जो संगीत बज रहा है मिलन का उसे बजने दो,
मुझे परवाह नहीं है कुछ कहने या सुनने की,
बरसात में तो नदी को किनारे तोड़ जाने दो,
आज बरसात नहीं होगी बादल फट जाएंगे,
वर्षों से रुका दिल का सैलाब दिल में समा जाएंगे,
अपने नाजुक एहसासों को बहुत मैंने किनारे रखा है,
आज उफनती गंगा को शिव की जटाओं में समा जाने दो,
लाइट बुझाओ मत और ज्यादा इसे जलने दो,
जिस्म के खड़े रोओं को जलते हुए मुझे देखने दो,
फुसफुसा कर बहुत घोला है मोहब्बत को मैंने अपने मुँह में,
दीवारों के जो कान है आँख है आज उनको भी फट जाने दो,
लिहाज कर बहुत घूँट घूँट जिंदगी जी ली है मैंने,
आज इस बेशर्म चाय को गर्म ही गले में उतर जाने दो ।।
prAstya……(प्रशांत सोलंकी)

Language: Hindi
16 Views
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