“बंदगी”
एक यकीन था तुझें मेरा
एक मै त्तुझें दिलाना चाहती थी
मै बस तुझें करीब से
एक बार देखना चाहती थी
मै तो तुझें सपनों की दुनिया में मिलती थी
कब मै कोई हकीक़त का फ़साना बनाना चाहती थी
मै मोम थी,
मै वाक़िफ थी अपने वजूद से
फिर भी मै पिघलकर
तुझें छूना चाहती थी
दूरियों का अहसास कब हुआ तुझसे,
कौन जाने
तू दूर था, मै पास आना चाहती थी
जब देखा तुझें सजदे किए
लाखों तेरी रांहो में
बस इसी तरह मै अपनी
“बंदगी” दिखाना चाहती थी।