बंटवारा
बचपन में ही कर दिया था बँटवारा
माँ ने घर के काम का।
बेटी के हिस्से आया घर की झाड़ू पोंछा बर्तन
बेटे के हिस्से बाजार से फल-सब्जी और राशन।
ईनाम में बेटे को मिलती सब्जी के बचे पैसों से कुल्फी।
और बेटी का ईनाम घर में पड़ी बची हुई कोई मिठाई।
टोका जाता था बिटिया को ज़ोर से हँसने पर
और नहीं देते थे रोने बेटे को चोट लगने पर भी।
मेहमान के आने पर चाय बनाने का ज़िम्मा
बिटिया का।
और दौड़ कर नुक्कड़ की दुकान से पकौड़े
समोसे लाने का काम बेटे का।
समझदार माँ ने बाँट डाले थे काम
बिल्कुल बराबर -बराबर दोनों में।
पर पता ही नहीं चला, कब अनजाने में
ज़िम्मेदारियाँ ओढे उसी के जैसी एक और औरत
तैयार हो गयी!
और घरेलू काम से उदासीन बाहर की दुनिया में मस्त
एक और पुरुष!
*** धीरजा शर्मा****