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11 Oct 2021 · 1 min read

बँटवारा (मार्मिक कविता)

कियो धर्मक नाम पर कियो जातिक नाम पर
कियो पैघक नाम पर कियो छोटक नाम पर
एहि समाजक किछू भलमानुस लोक
अपने मे कऽ लेने छथि बँटवारा।

हे यौ समाजक कर्ता-धर्ता लोकनि
किएक करेलहुॅं अपने मे बटवारा
आई धरि की भेटल एतबाक ने
छोट पैघक नाम पर अपने मे मैथिलक बॅंटवारा।

आई धरि शोक संतापे टा भेटल
आबो तऽ बंद करू एहेन बँटवारा
नहि तऽ फेर अलोपित भ जाएत
मिथिलांचलक एकटा ओ मैथिल धु्रवतारा।

हे यौ मिथिला केर मैथिल
जूनि करू अपने मे बँटवारा
ई मिथिला धाम सबहक थिक
एक दोसर केर सम्मान करू ई बड्ड निक।

हम कहैत छी मैथिलक कोनो जाति नहि
सभ गोटे एक्के छथि मिथिलाक धु्रवतारा
नहि कियो पैघ नहि कियो छोट
आई सभ मिलि लगाउ एकटा नारा।

कहबैत छी बुझनुक मनुक्ख मुदा
बँटवारा कऽ तकैत छी अपने टा सूख
एक बेर सामाजिक एकता लेल तऽ सोचू
गोत्र सगोत्रक फरिछौट मे आबो तऽ ओझराएब छोरू।

हम छी मिथिला केर मैथिल
हमर ने कोनो जाति अछि
सभ मिली मिथिला केर मान बढ़ाएब
आई सभ सॅं “किशन” एतबाक नेहोरा करैत अछि।

एक्कईसम शताब्दी नवका एकटा ई सोच
नहि कोनो भेदभाव नहि कोनो जाति-पाति
सभ मिली हॅसी खुशी सॅं करब एकटा भोज
एक्के छी सभ मैथिल गीत गाउ आई भोरे-भोर।

सबहक देहक खून एक्के रंग लाल अछि
मुदा तइयो जातिक नाम पर बँटवारा भऽ गेल अछि
सपत खाउ आ सभ मिली लगाउ एकटा नारा
आब नहि करब धर्म जातिक नाम पर हिंदुस्तानक बँटवारा।

कवि- किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)

Language: Maithili
1 Like · 329 Views
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