फौजी की पत्नी
फौजी की पत्नी बनी,सात वचन के साथ।।
नींद गवाईं मैं पिया,जगी तुम्हारे साथ।।
अपने सपने छोड़ कर,रँगी तुम्हारे रंग।
लेकिन तुम लड़ते रहे,मुझे छोड़ कर जंग।।
डटे रहे तुम देश का,बनकर पहरेदार।
तब मेरे ऊपर रहा,परिवारों का भार।।
जब रहते थे तुम वहाँ,सरहद पर तैनात।
सास ससुर को पूजती,खडी़ रही दिन रात।।
ननदों के नखरे सहे,देवर को सत्कार।
जो भी मेरे पास था,दिया उसे उपहार।।
अपने मन को मार कर,करती रहती काम।
क्षण भर भी मिलता नहीं,मुझे तनिक आराम।।
उलझन में उलझी हुई,सदा रही बेहाल।
तेरी हर तकलीफ में,बनी तूम्हारी ढ़ाल।।
तू सैनिक है देश का,मातृभूमि का भक्त।
मेरा भी जीवन रहा,बहुत अधिक ही सख्त।।
बहते आँसू रोक कर,बनी रही पाषाण।
तेरे बगैर ज़िन्दगी,लगती है बेजान।।
-लक्ष्मी सिंह