“फौजियों की होली”
डयूटी पर तैनात थे, गहरा सन्नाटा था छाया।।
हो जाये कुछ बात , फ़ौजी के मन मे आया।।।
क्या बात है भाई, आज तो तू बड़ा उदास है।। चेहरे पर हसीं नही, कुछ तो बात ये खास है।।
धीमे से मुस्काया फौजी, मुह को खोल उठा।
लेकर आह एक दर्द भरी, वो ये बोल उठा।।
माँ का फोन आया था, पूछ रही थी सवाल।
ये होली हमारे संग, मनाएगा क्या मेरे लाल।।
छोटी बहना भी मेरी, छुट्टी की जिद पर अड़ी।
भैया इस बार आना होगा,गुलाल लिए खड़ी।।
गुड़िया तो बोली पापा, इसबार तुम्हे आना है।
घूमना है बस मेला मुझे,मिठाई मेवा खाना है।।
वो पगली तो झूम रही,होली पर रसिया आएंगे।
कर देंगे उसे लालगुलाबी, होली खूब मनाएंगे।।
मलिक बोली बावरे, वर्दी का कर्ज चुकाना है।
दुश्मन की छाती तेरी,गोली का निशाना है।।
टूटी निंद्रा फौजी की, उसने ताना था सीना।
पूरा देश ही परिवार, इसके लिए मरना जीना।
करली तैयारी थी उसने, मनाने को फिर होली।
पीठ पर लगा पिट्ठू,बन्दूक में भर ली गोली।।
सुषमा किसीकी नजर लगे ना, मेरे देश के लाल को।
रंग बिरंगी होली फौजी की, जिंदगी भी खुशहाल हो।।
सुषमा मलिक, रोहतक