फैक्ट्री का भूत
शाम का समय था। मैं पापा के आफिस के बाहर अकेली खेल रही थी। पापा के आफिस से फैक्ट्री धुर अंदर तक दिखती थी। हल्का हल्का अंधेरा होने लगा था। फैक्ट्री के कर्मचारी छुट्टी होने पर एक एक करके बाहर निकल रहे थे। पापा आफिस में अपनी सीट पर थे और हमारा चपरासी सीताराम भी आफिस के बाहर ही खड़ा था। मैं खेलने में मगन थी। अचानक मैं खेलते खेलते रुक गई और फैक्ट्री की तरफ ताकने लगी। कुछ दूरी पर सीधे हाथ पर बने किसी कमरे में से एक आदमी निकला। धीरे धीरे तिरछा चलते हुए वह कुछ देर बाद एक बीच में दीवार होने की वजह से दिखना बंद हो गया। मुझे कुछ अजीब सा महसूस हुआ।
मैंने पापा और सीताराम को आवाज लगाई पर कहीं कोई होता तो जवाब देते। मैं फिर जोर जोर से चीखने लगी। मेरी चीख पुकार से पापा, सीताराम और अन्य कुछ लोग मेरी मदद के लिए मेरी तरफ भागे।
पापा बोले, ‘क्या हुआ?’ मैंने कहा, ‘पापा अंदर फैक्ट्री में मैंने अभी अभी एक अजीब सा आदमी देखा।’
सबने सोचा कि कोई चोर तो कहीं से नहीं घुस आया या कोई फैक्ट्री वर्कर तो अंदर नहीं रह गया। वैसे तो यह सब जानते थे कि फैक्ट्री बंद हो चुकी है और अंदर एकाएक किसी को होना तो नहीं चाहिए लेकिन सबको लगा कि मैं कह रही हूं तो एक बार देख लेना चाहिए। इस घटनाक्रम को सही से समझने के लिए मैं आगे आगे और सब मेरे पीछे पीछे चल पड़े। पापा ने पूछा कि, ‘वह आदमी कहां से निकला था?’ मैंने कहा, ‘पापा इस कमरे से।’ ‘इस कमरे से!’ सबने कमरे की तरफ देखा तो एक बार तो सब थोड़ा हैरान परेशान हो गये क्योंकि वह सब कमरे तो बंद थे और उनपर ताले पड़े थे। मैंने कहा कि, ‘मैंने इसी कमरे से उस आदमी को निकलते देखा था और उसे तिरछा चलते देखा था। वह जहां तक है मशीनों की तरफ बढ़ रहा था। सबने फैक्ट्री का कोना कोना छान मारा लेकिन आदमी तो दूर की बात है एक चिड़िया का पर भी हाथ नहीं लगा।
सब यह जानने को उत्सुक थे कि मैंने क्या देखा था? मैंने कहा कि, ‘वह एक परछाई जैसा दिख रहा था। परछाई तो काली होती है पर वह एक धुएं या धुंध की तरह सफेद था। एक कट आउट – आदमी की आकृति और आकार लिए। वह ऐसे चल रहा था जैसे आहिस्ता आहिस्ता कदम बढ़ाकर जमीन से कुछ ऊपर हवा में तैर रहा हो। उसे देखकर यह कोई भी आसानी से बता देगा कि वह एक जवान, कम उम्र का, सामान्य कद काठी और ढील ढौल का कोई लड़का है।’
यह सब सुनकर सब सन्नाटे में आ गये कि वह कोई जीवित इंसान नहीं बल्कि कोई मृत भटकती आत्मा थी।
उसके बाद वह मुझे दोबारा कभी नहीं दिखा लेकिन सुनने में आता है कि उन कमरों में कभी दो चार छात्र मिलजुलकर रहते थे। वहां कभी कोई झगड़ा हुआ था और गोलीबारी भी। उनमें से एक लड़का गोली लगने से मारा गया था। यह जमीन पापा ने फैक्ट्री बनाने के लिए खरीदी थी जिसमें पेड़ लगे हुए थे और कुछ एक कमरे आदि बने हुए थे। कमरे की लकड़ियों के दरवाजों पर आज भी गोलियों के निशान मौजूद हैं। इस लड़के की आत्मा सालों साल फैक्ट्री में भटकी है।
यह अनुभव होने के बाद मैंने जब कभी भी किसी पुराने वर्कर से बात करी तो पाया कि ज्यादातर को उसकी मौजूदगी का अहसास कभी न कभी हुआ है। वह सबको आसानी से दिख भी जाता था।
रात की शिफ्ट में जो भी कर्मचारी काम करते थे उनमें से शायद ही कोई हो जो उसे न देख पाया हो।
हमारे परिवार को उसने कभी किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया।
पंडित जी जो हमारे यहां चौबीस घण्टे रहते थे, उन्हें तो धक्का मारकर उसने स्टूल से नीचे गिरा दिया था। एक अन्य कर्मचारी को छुट्टी वाले दिन उसने अकेला पाकर पीट डाला था। उस भूत के डर से कितने लोग तो यहां काम पर ही नहीं आते थे। आते थे तो नाईट शिफ्ट में काम नहीं करना चाहते थे। करके देखा और शुरू में ही कुछ असाधारण अहसास होने पर नौकरी छोड़कर भाग जाते थे लेकिन अब तो एक लम्बे अरसे से ऐसी कोई घटना मेरे सुनने में नहीं आई है। हां बस अभी कुछ महीने पहले मुझे गेट पर रात की ड्यूटी पर जो सिक्योरिटी गार्ड है वह बता रहा था कि, ‘मैडम, मुझे एक रात बहुत डर लगा। इतना डर मुझे यहां इससे पहले कभी नहीं लगा।’ मैंने पूछा, ‘क्या हुआ?’ वह बोला, ‘मुझे जोर से किसी ने धक्का मारकर कुर्सी से गिरा दिया। मैं पूरे होशोहवास में था लेकिन मुझे कोई दिखा नहीं तो मैं बहुत ज्यादा डर गया और पसीने में नहा गया।’
मैंने मन ही मन सोचा कि ‘ मैं तो सोच रही थी कि यह भूत का किस्सा कभी का खत्म हो चुका है। यह तो फिर जो बता रहा है उससे तो लग रहा है कि वह अभी भी यहीं रहता है लेकिन अब हमारी फैक्ट्री का भूत लग रहा है कि पहले से कहीं ज्यादा स्मार्ट हो गया है। पहले फैक्ट्री के अंदर ही घूमता था अब वहां से बाहर निकलकर मेन गेट तक हवा खाने, घूमने और टहलने के लिए भी आने लगा। पहले वह जवान था, लगता है अब बूढ़ा हो चला है और अपनी सेहत और रखरखाव का हम इंसानों की तरह उसे भी ख्याल है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001