“फेसबूक मित्रों की बेरुखी”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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कहो तुम दोस्त हो कैसे ? नहीं तुम उसकी सुनते हो !
जुड़े हो तुम सदा उनसे नहीं तुम दोस्त लगते हो !!
नहीं जाना तुम्हें हमने तुम्हें अपना बनाया है !
न तुमको देख पाये हैं कभी ना जान पाया है !!
लिखें जो खत तुझे कोई कभी भी तुम नहीं पढ़ते !
रहा करते हो एक्टिव तुम कोई भी खत नहीं लिखते !!
बना वर्जित तुम्हारा सब कहाँ लिखें बताओ तुम !
अगर सुनना नहीं है तो कोई रस्ता दिखाओ तुम !!
विचारों का मिलन ना हो तो फिर हम रह नहीं सकते !
बने अनजान जीवन भर डगर पर चल नहीं सकते !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका ,झारखंड
भारत
08.06.2024