फेसबुक वाला प्यार
तस्वीर दिखी,
तेजी से सड़क रहे न्यूजफीड में रुकावट आई,
शुरुआत यूं तो तस्वीर संग आंख मिचोली से हुई,
पर मोहतरमा से मुलाक़ात अगली होली में हुई ।।
खैर, यूं तो बातें बढ़ कर अब मैसेंजर तक थी आई,
अनजान दोनो कल तक थे जो, आज चैट लिस्ट में सबसे ऊपर नाम उनकी थी आई ।
दिल उनपर हार चुका था मैं,
उनको अपना मान चुका था मैं,
हां पर वो अब भी पराई है,
इस बात को भी अब जान चुका था मैं ।।
दिन, लम्हा, वक़्त, चैट सब बढ़ता गया,
उठता सवेरा हो या ढलती शाम,
दिलरुबा को वीडियो कॉल पर देखने का था बस काम ।।
मचलता मौसम, स्याह बादल,
बरखा को धरती से लिपटते देख, तूफ़ां के झोंके उठे हमारे दिल में थे,
की अचानक बजी फोन की घंटी,
देखते ही लगा, शायद दिल की ज़मीं गीली उधर भी थी,
तैयारी अब करने को हाथ पीली उधर भी थी ।।
कोशिशें हजार, मिलने पर हुए आंखें चार,
सामने थी अब बैठी वो, जिसे देखने को था जिया बेकरार,
निगाहें थम सी गई उनकी सूरत पर,
दिल था अब आया, इश्क़ की देवी के मूरत पर ।।
हया की चादर में लिपटी,
जुल्फें संवारती, जब धीरे से पलकें उठाती थी,
मानो हर धड़कन वो नाम अपने कर जाती थी,
दिल बोझ से दबा, सवालों के, जो थे हज़ार,
जवाब के इंतज़ार भी उन्हीं से, जो खुद जगाते अरमानों की थी बाज़ार,
सारे सवालों को एक किनारे रख,
दिया पैग़ाम हमने, इज़हार-ए-मोहब्बत का,
उन्होंने बड़े नाजों से ठुकराया,
दिया हिसाब हमने वफा-ए-इश्क़ के शोहरत का,
नज़रें झुकाए कहा, है हमने किसी और का दिल चुराया,
हमने कहा कुछ तो इज़्जत कर लेती, हमारे किए तुम्हारी इबादत का,
उन्होंने समझाया इज्जत भी आप करें शुक्र अदा भी,
की जो आप सलामती से लगा रहे इल्जाम हैं,
ये दया है मेरी शराफत का ।।
पूछा हमने, फिर ऐसी क्या परी विपदा, जो तुम हमसे मिलने आई,
कहा मोहतरमा ने, विपदा तो नहीं पर हमने सोचा मिल कर फ़्री में दो चार हो जाएगी रस मलाई ।।
पूछा, ज़िन्दगी में और कितने भूचाल ला, मचाना है तबाही,
कहा उन्होंने भूचाल को ज़िन्दगी में ना लाने कि, दिल आपका ना दे जब तक गवाही,
तब तक यूं मचेगी तबाही, तब तक हम मचाएंगे तबाही ।।
– निखिल मिश्रा