” फेसबुक कहियो धूमिल नहि हैत “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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व्यक्तिगत उपहास ,परिहास आ आलोचनाक व्यंजन हमरा सं परोसल नहि जायत अछि ! इ ग्राह्य कखनो नहि भ सकैत अछि ! तें अपना पर व्यंगक प्रहार करैत छी ! किनको पाचनतंत्र दुर्बल नहि हैतनि ! ….
.आजुक युग मे बिनु पढ़ने सब कालिदास बनि जेताह इ सम्भव नहि अछि !….. हम फेसबुक कें एकटा महान पोथी बुझैत छी जाहि मे लेखक ,….कवि,…..चित्रकार ,दार्शनिक ,…..व्यंगकार ,….कलाकार इत्यादि लोकनि अपन -अपन साहित्यक रचनाक फुहार सं शीतलताक प्रदान करैत छथि ! .
..हम त एहि ज्ञान गंगा मे डूबकि लगबैत रहित छी परंच गंगा ,यमुना आ सरस्वती रूपी पुस्तक सं हम परहेजो नहि करैत छी ! ..
जेना रंगमंच मे अभिनय करयवला सब अभिनेता आ अभिनेत्रीये टा नहि होएत छथि ..ओहिमे किछु विदूषक सेहो रहेत छथि ! हुनका लोकनिक व्यंगात्मक अभिनय क प्रस्तुति कखनो -कखनो हास्य क परिसीमा लांघि ह्रदय पर पैघ प्रहार सेहो क देत अछि ! …..
एहिना फेसबुक मे यदा -कदा एहनो लोक भेटि जाइत छथि !….एकटा मित्र फेसबुक सं जुड्लाह…नीक लागल …नव मित्रता क उपलक्ष्य मे हुनका पत्र आ कविता लिखलहूँ ….टाइम लाइन वो अप्पन नेपथ्य मे रखने छलाह …तें हमरा टैग करय पडल ….
ओ लिखलनि ..”Friends, if someone is hurt by posting me then, please inform us. I do not want to keep such friends myself.”…..मित्रता मे हमरा बुझने संभवतः कोनो आउट ऑफ़ बाउंड नहि होइत छैक ! तथापि “I do not want to keep such friends myself.” बड्ड विचित्र व्याक्य क प्रयोग ! ..
आब दोसर मित्र भेटैत छथि …..फ्रेंड रिक्वेस्ट हुनकर काल्हिये आयल ..हुनको स्वीकार केलहुं आ खूब नीक जकाँ पत्र लिखलहूँ ! पत्रोतर कोनो नहि….कमेंट कोनो नहि ….हुनकर अनुरोध हमर टाइम लाइन पर आयल “आदरणीय ! ” हमर किछु पुस्तक अपने पढ़य चाहब ?…. किन्तु,अपन वचनबद्धताक कारणेँ हम मूल्य मांगब…..जेहन इच्छा।” …कहू संवाद अखन कोनो भेल नहि .बिजिनस प्रारंभ ?…….प्रतिउत्तर मे हम लिखालियन …..
” अखने अखने त मित्रक आवरण ओढ़लहुँ पत्राचार नहि भेल आ कमर्शियल बनि गेलहुँ ?@लक्ष्मण ”
……एहिना व्यंजन फेसबुक मे भेटैत रहित अछि ..तथापि एहि रंगमंच क महत्व कहियो धूमिल नहि भ सकैत अछि ! हम सब दर्शक छी आ फेसबुक हमर रंगमंच बनल अछि
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
भारत