फेसबुकिया बुखार ( हास्य व्यंग कविता)
वाह चेहरा -ऐ-किताबी ,तेरा जलवा कमाल है,
सारी दुनिया तेरे इश्क में इस कदर बीमार है।
बच्चे,जवान, औरत हो या मर्द क्या बूढे भी ,
कर बैठे हैं तुझसे सभी निगाहें चार है।
तेरे पहलु में जो भी आया वोह तेरे हो बैठा ,
फिर जहाँ से उसे क्या,उसका तो तू ही संसार है।
जिंदगी में कुछ और रहे न रहे ,कोई गम नहीं,
मगर तेरे नाम का नशा सदा बक़रार है ।
कहने को तो लाखों दोस्त हैं फ्रेंड लिस्ट में जी !
मगर पड़ोसियों से रहती सदा तकरार है।
गुफ्तगू किये घरवालों से ज़माना गुज़र गया,
बस मेसेज और चैटिंग ही हर रिश्ते का आधार है।
तुममें और कुछ खामियां तो अच्छाई भी तो है,
जन्मदिन,सालगिरह,बरसीयां की याद बरकरार है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी का हो बेजोड़ ज़रिया ,
जो कुछ भी है दिल में सब उगलने को जुबां तैयार है।
तुम्हें तो दो धारी तलवार कहना भी गलत न होगा,
भाईचारे का सन्देश देने वाले तेरे हाथ में कटार है ।
तुममें एक और अच्छी बात है हमने सदा माना ,
तुमने हम जैसों के छुपे हुए हुनर को भी उभारा है
शुक्रिया उस शख्स का ,जिसका नाम है जुकरबर्ग ,
एक खुबसूरत मायावी जाल का किया आविष्कार है ।