फूल
राष्ट्रहित सु नेक बन।
दिव्य ज्ञान -टेक बन।
भारत -उद्यान के,
फूल हॅंसें एक बन।
नेहरूप चूल हूॅं।
आनंदी मूल हूॅं।
जागरण सु तूल बन,
हॅंसूं, क्यों कि फूल हूॅं।
दोपहर की धूल में,
पड़ा दूॅं,सुख-चूल मैं।
गम न तुझको रौंद दो।
पैर तुम तो फूल मैं।
द्वंद्वमय जग-डाल पर।
चेत कंटक ख्याल कर।
फूलिए, सुबोधी बन।
फूल -सम हर हाल पर।
पं बृजेश कुमार नायक