फूल
तेरी किस्मत को क्या कहूँ
तू तो मानव मानवता युग की बगिया की गुलशन गुलजार।।
हर कली को फूल की किस्मत का इंतजार बेईमान भौंरो को क्या पता कब बिछड़ गया बिखर गया चाँद चकोर सा उनका प्यार।।
महबूब के आने पे बहारो की बरसात अरमानों के चाँद के चेहरे का सेहारा।।
वर माला में चाहतों की जिन्दगी का इज़हार गज़रे में संजती मीर गालिब की ग़ज़ल दिवानों महफिल की शान।।
हर सुबह शाम इंसा की आशाओं का विश्वास भाग्य भगवान् का श्रृंगार खुशियों खुशबू की गुलशन मुस्कान।।
गर खुशियों की खुशबू है तो गम में श्रद्धा कि अंजलि गुजरे रिश्ते यादों लम्हों की प्रसंग प्रेरणा जज्बात।।
देवो के सर पे इतराती माला में गुथी जाती पैरों से रौदी जाती।
हर सुबह कली डाली की बिना किसी अभिलाषा के फूल मानव मानवता युग की गम खुशियों भाग्य भगवान् मंज़िल मक़सद का बहार बन जाती।।
तेरी चाहत तो युवा जोश का सत्कार साहस शक्ति पराक्रम के परिधान नफरत तुझको कायर से धैर्य वीर धीर का अभिमान।।
कली फूल को भाषा जाती धर्म का मर्म नहीं मालूम जानती मात्र पुरुषार्थ की परिभाषा सम्मान।
वतन पे मर मिटने वालों के धूल की की फूल धन्य धरा धरोहर की पहचान।।