फूल
चहक उठा नन्हा सा परिंदा मन का ,
बिख़ेर ख़ुश्बू जब फ़िज़ा में मुस्कराया फूल
एक अर्से से दबी चिंगारी फिर भड़की ,
पुरानी किताब में जो सूखा नज़र आया फूल
नन्ही सी बूंद मिट्टी से मिल के उठी महक ,
जैसे बादल ने दामन से हो बरसाया फूल
किसी ने फेंका एक पत्थर जो मचाने हलचल ,
दर्द ने ज़ज़्बातों की झील में खिलाया फूल