फूल तुम्हें क्या भेंट करूँ
फूल तुम्हें क्या मैं भेंट करूँ
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फूल तुम्हें क्या मैं भेंट करूं,
खुद ही फूल गुलाब हो तुम|
मल्लिका या फिर परी कहूं,
लावण्य लाज़वाब हो तुम|
हर यौवन फीका पड़ जाए,
सुंदर हसीं शवाब हो तुम|
खुली आंखों से देखता रहूं,
सुंदर सरस ख्वाब हो तुम|
बेहिसाब उलझनों से भरी,
उलझा सा हिसाब हो तुम|
नभ में न जाने तारे कितने,
उगता आफताब हो तुम|
तू ही वैलेनटाइन मनसीरत,
उपहार माहताब हो तुम|
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)