फूल झरते हो
फूलों की खुशबू से भी
महीन सुरभि है मेरे यार की
ज़रा उस दीवार के पीछे
झांककर तो देखो ।
फूलों से भी नाजुक
जिस्म है उनका
नफासत से
सहेजकर रखा है
इस दुनिया की आंधी में ।
ये रंगीनियाँ फूलों की नही
उनके नूर की शोभा है ।
परियों सा उनका हुस्न है
गुलशन भी जिससे शरमाये
बोली ऐसी जिसकी
फूल झरते हो
जैसे गुलशन में ।….
मधुप बैरागी.