फूलो की कहानी,मेरी जुबानी
एक दिन मैं अपने बगिया मे
ऐसे ही घूम रही थी।
तरह- तरह के फूलों को देखकर
मन ही मन खुश हो रही थी।
एक बात मन में बार-बार आ रही थी।
क्या फूल सदा खुश ही रहते हैं,
या कभी उदास भी होते है
यह प्रश्न मन को कई बार सता रहा था!
मैने भी सोचा मन में प्रश्न रखने से अच्छा है ,
आज जाकर फूल से पूछ ही लेती हूँ
कि वह कभी उदास होती है या नहीं।
मै चली गई सीधे फूल के पास
मैंने पूछा- ये फूल रानी!
तुम इतनी जो प्यारी लगती हो।
सदा हंसती हुई दिखती हो ।
हमेशा खिली-खिली लगती हो।
हर समय खुशी में झूमती रहती हो।
तुम अपनी निराली छटा बिखेरती रहती हो।
सच्चाई की तुम मूरत दिखती हो।
पर क्या सब कुछ जैसा दिखाती हो,
क्या तुम वैसे ही होती हो,
या फिर कभी तुम उदास भी होती हो?
फूलो ने कहा -ऐसी कोई बात नही है।
मै भी होती हूँ कई बार उदास ,
पर क्या करूँ ,दिखाती नही हूँ।
मैने भी उत्सुकता वश उससे पूछ लिया।
आखिर वह क्या बात है ,
जो तुम्हे भी उदास करती है?
फूल बोली- जब भौंरे मेरे ईद-गिर्द न मंडराते है।
मेरी पत्तियों को वह छूकर न जाते है।
उनसे जब न मिलता है मुझे प्यार ,
यह सब देख मुझे कहाँ अच्छा लगता है।
यह सब मेरे मन को भी दुखता है,
यह सब देख मेरा मन भी उदास हो जाता है।
जब तपती गर्मी मुझे सताती है ।
बारिश की बुँदे मेरा साथ छोड़कर चली जाती है,
और मुझे तपता हुआ अकेला छोड़ देती है।
यह देख मुझे कहाँ अच्छा लगता है।
मेरे मन को यह बात चूभता है।
यह बात भी मुझे उदास करता हैं।
जब पतझड़ का मौसम आता है,
मेरे पत्ते पेड़ से झड़ जाते है।
वो भी मेरा साथ छोड़ देते है।
मेरे पास इतराने के लिए कुछ नही रह जाता है।
यह देख मेरा मन उदास हो जाता है।
कुछ मनचले जब मेरे बगिया में आते है।
मेरी कलियों को तोड़कर मसल जाते है।
यह सब देख मुझे क्रोध भी आता है।
और मन उदास हो जाता है।
यह सब सुनकर मैंने कहा-हे फूल रानी!
फिर हमारी और तुम्हारी जिन्दगी में
अंतर क्या है?
जिस बात पर तुम उदास होती हो,
उसी बात पर तो मैं भी उदास होती हूँ।
चलो यह शायद जीवन का चक्र है।
खुशी और गम सबके जीवन मैं आता-जाता है।
~ अनामिका