– फुर्सत –
क्या बेचकर खरीदें तुझे
सब कुछ तो गिरवी पड़ा है
जिम्मेवारी के बाजार में
बता तो जरा मुझे औ फुर्सत !!
कहाँ से लाऊँ तेरे लिए
आराम तलबी के वो लम्हे
वक्त भी मिलता ही नहीं है
खोजने तुझ को औ फुर्सत !!
चल चल कर थक सा गया हूँ
खुद के लिए वक्त तक बचा नहीं
हर काम जब करना मुझे ही है
तो फिर कैसे मिलेगी मुझको फुर्सत !!
बस इक शब्द की तरह सीमित हूँ
हर काम के बोझ से दब गया हूँ
जिस काम को करता हूँ लगन से
बस उस के लिए तू बची है औ फुर्सत !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ