फुर्सत की गलियां
हो कभी फुर्सत तो खुद से भी मिल आया करो
भूली-बिसरी यादों संग कुछ पल तो बिताया करो ।
खट्टी-मीठी यादें यहां, जीवन की सौगातें यहां
जाने कितने लम्हे ठहरे बीती बातें हैं जहां
इन अहसासों की गलियों में
थोड़ा घूम भी आया करो
हो कभी फुर्सत तो खुद से भी मिल आया करो।
यादों के दर्पण में लगता वक़्त ठहर सा जाता है
पल दो पल के लम्हों में जीवन पूरा गुजर जाता है
कर देता यह मन को पुलकित
कभी तो सुकून भी पाया करो
हो कभी फुर्सत तो खुद से भी मिल आया करो।