लोकतंत्र
लोकतंत्र की बज रही है तूती
लोक है सोया , घिसट रही तंत्र की जूती
मंत्री राजा राजतंत्र से
संत्री सेवक माने ना
सब ये माने सही वो ही बस
कोई किसे अपनाए ना
लाठी जिसकी भैंस उसी की
मत का भेद स्वीकारे ना
चारो स्तंभ खडे दिख रहे
भीतर दरार नजर मे आवे ना
गणित वोट का सबसे पहले
पाठ समझ उलझाए ना
जाती धरम मे उलझ उलझ कर
नेता गलत बन जाए ना
विकास मे छिप गई रोजी रोटी
दर्द भीतर सुलगावे ना
विश्व गुरु की गाजर पीछे
खरहा सभी बिसराए ना
जवाब देही हो लोक की सत्ता
जिम्मेदार हो हर जन की मंशा
धरम नागरिक निभता जाए
लोक सेवक की लगाम कसाए
बडे देश की कोई ना हो भावना छोटी
दीप्त रहे लोकतंत्र ज्ञान की ज्योति