फिर सुखद संसार होगा…
दूर हर अँधियार होगा।
फिर सुखद संसार होगा।
हर खुशी निर्बाध होगी।
पूर्ण मन की साध होगी।
भूलवश गलती किसी से,
हुई यदि एकाध होगी।
शोध सारी खामियों को,
मूल से निस्तार होगा।
अब न इच्छा रुष्ट होगी।
कामना संतुष्ट होगी।
एकता का भाव होगा,
भावना संपुष्ट होगी।
फिर मनों से मन मिलेंगे,
जुड़ रहा हर तार होगा।
सुन जरा वैदिक ऋचाएँ।
गूँजती हैं दस दिशाएँ।
भोर तम को चीर बढ़ती,
लड़खड़ाती-सी निशाएँ।
उदित होगा बाल रवि फिर,
फिर तमस संहार होगा।
हर चरण अब पूर्ण होगा।
लोक मिल संपूर्ण होगा।
पाशविकता ध्येय जिनका,
दम्भ उनका चूर्ण होगा।
कर परिष्कृत मूल्य सारे,
संग्रहित हर सार होगा।
छल छद्म सब दूर होंगे।
दर्प सबके चूर होंगे।
गौरवान्वित सत्यवादी,
मान से भरपूर होंगे।
झूठ का परदा गिरेगा,
सत्य का दरबार होगा।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )