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13 Feb 2023 · 1 min read

फिर वो मेरी शख़्सियत को तराशने लगे है

फिर वो मेरी शख़्सियत को तराशने लगे है
हां शायद मेरे कुछ गुनाह को भुलाने लगे है

वक़्त को भी जरासा वक़्त लगता है ए दोस्त
कुछ गहरे ज़ख्म अब थोड़े थोड़े भरने लगे है

✍️©’अशांत’ शेखर
13/02/2023

Language: Hindi
1 Like · 479 Views

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