फिर वसन्त आया …
सूरज की किरणों ने पोर पोर चूमा
अलसाया सूर्य-कमल मस्ती में झूमा
मंद पवन झोकों ने, वन-चमन महकाया….
पेड़ों पर तरुणाई, वलनाती बेलें
रंग भरे बागों मे, आओ चलो खेलें
खेतों में सरसों ने, धूप को डराया….
भौरों के अंग लगीं, सरसिज की पॉखें
पात हीन टेसू की लाल हुई आंखें
अरुण उतर सरवर में, छोड़ गया साया
बालक सी धूप देह, वस्त्र बिना घूमे
पर्वत से चढ़- उतर, नगर ग्राम चूमे
बागों में मखमल सी, धरती की काया
फिर वसंत आया