” फिर भी नारी को बदल ना पाया “
वाह मानव ! क्या रीत चलाईं ,
धर्म ने काट दी एक – दूजे की कलाई ।
हिंदू ने ‘ जानेवा ‘ कराया ,
फिर भी नारी को बदल ना पाया ।
मुस्लिम ने ‘ खतना ‘ कराया ,
फिर भी नारी को बदल ना पाया ।
सिंख ने ‘ पंच क ‘ अपनाया ,
फिर भी नारी को बदल ना पाया ।
ईसाई ने मुर्ति पूजन को हटाया ,
फिर भी नारी को बदल ना पाया ।
जिधर बहती समुद्र की धारा ,
उधर चलती नारी की काया ।
फिर भी नारी को बदल ना पाया ।
फिर कैसे कह डाला तुने हे माया ,
जाति का ना मेल हमारा ,
कभी ना होगा मिलन हमारा ।
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली