फिर भारत को परतंत्र करो ना तुम
अपने जन हुए पराए,
तब विदेशी के हम गुलाम हुए,
पर, बात अब भी समझ ना आती,
कैसे तुम इंसान हुए??
ठोकरें ना जाने कितने खाएं,
ना जाने कितने कष्ट सहे,
फिर भी लड़ रहे आपस में,
यह क्या नव तर्क हुए,
रुला रहे क्यों उन,
बलिदानों की आत्मा को,
छोड़ दिया जो सब मोह जीवन के,
परतंत्रता से रक्षा को,
शर्मिंदा क्यों करते हो तुम,
उनके बेहना के राखी को,
कुछ लाज तो रख लो इस धरती का,
होती आपस में मतभेद बहुत ,
पर मनभेद ना हो आपस में,
अपने स्वार्थ के आगे,
फिर भारत को परतंत्र करो ना तुम।