फिर बेटी
फिर बेटी होने पर चहूँ और बेटे बेटे का गुंजन हो रहा है ।
ये समाज ये विचार मुझे जीवन भर के दुख का एहसास दिला रहा है ।।
पर मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि –
ईश्वर से मुझे फिर एक परी मिली ।
यूं ही नहीं मेरे आंगन में एक और कली खिली ।।
बोया गया तो बेटे को था ।
पर अरमान पूरे करने बेटी आसमांं से जमी पर उतरी ।।
मेरी बगिया के हर फूल की पंखुड़ी यूं ही नहीं निखरी।
कहकर नहीं करके बताना है
इस दलदल भरे समाज में बेटियों
को कमल की तरह खिलाना है ।।
Mangla kewat from hoshangabad mp