फिर तुम्हारी याद
फिर पुराने दिन नए से लग रहे हैं
फिर तुम्हारी याद की दस्तक सुनाई दे रही है
फिर भ्रमर की गुंजनों से तार मन के बज उठे हैं
फिर पपीहे की कुहुक कुछ छेड़खानी कर रही है
फिर अँधेरी रात में जुगनू निकलने लग गए हैं
फिर नदी की थाह बातें आसमानी कर रही है
फिर फलक पर सारसों का झुंड देखो उड़ रहा है
फिर निगाहें आसमां की एक कहानी कह रही हैं
फिर हमारी सांझ का चंदा पिपासित हो उठा है
फिर चिलकती धूप बादल से घुमड़ कर बह रही है
फिर अधर की फुसफुसाहट से तुम्हारे नूपुरों में
स्निग्ध यौवन की कोई हरकत सुनाई दे रही है
फिर पुराने दिन नए से लग रहे हैं
फिर तुम्हारी याद की दस्तक सुनाई दे रही है