फिर जनता की आवाज बना
जनता की आवाज बना
उनको लगा कायर है नायक
परिचित नहीं अभी शक्ति से
शून्य होकर सहस्र से से टकराएगा
तू अकेला चूर चूर हो जाएगा
निराशा ऊर्जा का संगम साथ में
मानसिक अवस्था हताश मै
दो पृथक विचारधाराएं समक्ष हैं
कहती है अब साथ में
अब विपदा में मन
फिर नायक आगाज करें
फिर मोहरों से बात करें
स्तब्ध था देख परेशान मै
फिर जाना टूटना तय है
स्मरण हुआ स्वयंबर थोड़े है
मस्तिष्क में है शब्द पास
निश्चित ही वर्तमान में शकुनी हूं
स्तब्ध ना रह पाऊंगा
फिर ध्यान हुआ श्री कृष्ण का
अब चुप रहना ही ठीक है
फिर नायक जुट पड़ा
जनता की आवाज बना
निम्न विषयों को उग्र बनाकर
जनहित का काम किया
प्रतिफल मिला द्वेष ईर्ष्या
प्रसारित हुई व्यक्तित्व पर भ्रामक बातें
जलन का तो क्या कहना
फिर जनता की आवाज बना
अब आत्म मन शांत है
भीम सा सहस्त्र बल नहीं
जो इन से लड़ पाऊंगा
फिर जनता की आवाज बना
एवो सिद्धांत पूर्ण युद्ध नहीं
जो भोर में शंखनाद होगा
शब्द पास भरे हैं तरकश में
फिर जनता की आवाज बना
फिर जनता की आवाज बना
लेखक
विष्णु शंकर त्रिपाठी
रामगंज अमेठी