फिर कोई मिलने आया है
फिर कोई मिलने आया है
आशा की उर्वरा धरा पर फिर कोई तरु मुसकाया है
साँस साँस सरगम सी गुंजित
करती हृदय सिंधु आलोड़ित
उर उपवन की कोई कलिका
नहीं रह गई अब अनमुकुलित
ज्वार हर्ष का रत्नराशि की ढेरी फिर तट पर लाया है
आशा की उर्वरा धरा पर फिर कोई तरु मुसकाया है
सुखद अलौकिक ज्योति जली है
सघन तमिस्रा आज टली है
मानस-दोष मिट गए सारे
गुण सम्वर्धक हवा चली है
रोम रोम रोमांचित होकर आलिंगन को अकुलाया है
आशा की उर्वरा धरा पर फिर कोई तरु मुसकाया है
अद्भुत साज गए हैं साजे
बजते हैं अनहद के बाजे
रंगमहल में धूमधाम है
उसमें शालिगराम विराजे
आगन्तुक ने अपना वैभव अवनीतल पर बगराया है
आशा की उर्वरा धरा पर फिर कोई तरु मुसकाया है
©®- महेश चन्द्र त्रिपाठी