प्रदूषण रुपी खर-दूषण
वो गंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फिक्र को धुएं में उडा़ता चला गया
वो गंदगी का साथ निभाता चला गया…
बर्बादीयों का शोर मचाना फिजूल था
वो प्रदूषण का जश्न मनाता चला गया
पटाखों की लडी़यॉ जलाता चला गया
वो गंदगी का साथ निभाता…
भले बुरे का फर्क न कर सके जहॉ
धुन्ध के मुकाम को बढ़ाता चला गया
पॉबंदीयों को धुएं में उडा़ता चला गया
वो गंदगी का साथ निभाता…
पेट्रोल-पटाखें,पराली जलाना फितुर था
वो तो हवा में ही जहर घोलता चला गया
गला मासूमों-बीमारों का घोटता चला गया
वो गंदगी का साथ निभाता…
ताजी आबोहवा से जहॉ सबका वजूद था
उसे ही दमघोटू गैसचैम्बर में तब्दील कर
वो उसी को ही ताबूत बनाता चला गया
वो गंदगी का साथ निभाता…
नादानीयों के जश्न में बडा़ ही मशगूल था
दीवाली उजाला धुएं में छिपाता चला गया
अपनों की जान दॉव पे लगाता चला गया
वो गंदगी का साथ निभाता…
परेशानीयां देख समझा कर बैठा भूल था
अब वो जाग के सबको जगाता चला गया
प्रदूषण की फिक्र रूह में बिठाता चला गया
वो अब जिंदगी का साथ निभाता…
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प्रदूषण रूपी खर-दूषण को हमारे संयुक्त प्रयासों से ही हराया जा सकता है इसलिए जागरुक बन सहयोग करें।
-©जीवनसवारो