फिर आयेंगे दोस्तों
फिर आयेगे दोस्तो
जाना इस दुनिया से ,सबको हम भी जाएंगे
काल यार,और प्यार की यादें छोड़ के जाएंगे
पता नहीं ये जीवन का अब कहां खेल के जायेंगे
खुम्मारी का लौटा थामें अपने आप थम जायेंगे……
कुछ भी कह दो कुछ भी कह दो एक दिन तो हम जाएंगे
समेट पोटली अपने कर्मों की शून्य हस्त चले जाएंगे
यश जिसका वैभव बनेगा वो चिरस्थायी हो जाएंगे
अंधकार कि वो दुनिया, में वसु प्रकाशमय कर जाएंगे…..
पता नहीं न आज का कल का फिर भी शुद्ध जीयेगे हम
तमता की इस नगरी में यारों लड़कर ही जीयेगे हम
वो मानव भी मानव क्या है जो हार गया अपनों से ही
खुली स्वतंत्रता आजाद घूमती ये उसके कर्मों से ही…….
यादों की बारात बनाकर, फिर हम को तो जाना है
याद ना आए दुनिया को हम, मेरा बस ये कहना है
खुशबू बात स्वतंत्रता जैसी, हमको प्रसार कर जाना है
आए हैं, जाएंगे, फिर से आएंगे,
ये साबित कर जाना है..
पता नहीं यह मंथन कैसा ये विचार कहां से आये
फिर भी सच है यारों आये हैं और फिर जाये……
{ सद्कवि }
प्रेम दास वसु सुरेखा