फिर आयेंगे दोस्तों
जाना इस दुनिया से सबको हम भी जाएंगे
काल यार और प्यार की यादें बस छोड़कर जाएंगे पता नहीं ये जीवन का अब कहां खेल कर जाएंगे खुम्मारी का लोटा थामे अपने आप थम जाएंगे
कुछ भी कह दो कुछ भी कर दो एक दिन तो हम जाएंगे
समेट पोटली अपने कर्मों की शून्य हस्त चले जाएंगे यश जिस का वैभव बनेगा वो चिरस्थाई हो जाएंगे अंधकार की वो दुनिया में वसु प्रकाशमय कर जाएंगे
पता नहीं न आज का कल का फिर भी शुद्ध जीयेगे हम
तमता की इस नगरी से यारों लड़कर ही जिएंगे हम
वो मानव ही मानव क्या है जो हार गया अपनों से ही खुली स्वतंत्रता आजाद घूमती यह उसके कर्मों से ही
यादों की बारात बनाकर फिर हमको तो जाना है
याद ना आए दुनिया को हम बस मेरा यह कहना है खुशबू बात स्वतंत्रता जैसी हमको फैला ही जाना है आए हैं जाएंगे फिर से आएंगे यह साबित कर जाना है
पता नहीं ये मंथन कैसा ये विचार कहां से आये
फिर भी सच है यारों आये हैं और फिर जाये……
सद्कवि
*******प्रेम दास वसु सुरेखा********