फितरत
एक ही थाप से दरिया उफ़ान पर आ गया,
जो दिल में था सब ज़बान पर आ गया।
जो बुलाते थे कभी आना घर हमारे,
रंग बदला मकान से दुकान पर आ गया।
जब तक मिलायी हां सब ठीक था लेकिन,
सर उठा के बोला तो खानदान पर आ गया।
रो रो कर मांगता था वोट सारे जहान से,
बन गया है नेता तो आन बान पर आ गया।
लाख सिकंदर बनो लेकिन जमीं पर रहो,
महलों से जो है निकला श्मशान पर आ गया।
✍️ दशरथ रांकावत ‘शक्ति’