फितरत
“फितरत”
अगर बेवफाई तेरी आदत में है, तो सच्ची मोहब्बत मेरी फितरत है।
मैंने तो दिल की मल्लिका बनाना चाहा, तू दर दर भटके शायद यही तेरी किस्मत है।।
तू किसी एक की नहीं तू सबकी है, क्या यही तेरी फितरत है।
मेरे इतना चाहने पर भी खुद को नहीं बदल सकी तू, यही तेरी फितरत है।।
अब न चाहकर भी मुंह मोड़ रहा हूं तुझसे, शायद यही तेरी किस्मत है।
बेपनाह मोहब्बत का कैसा सिला मिला, मेरी ये कैसी किस्मत है।।
जा रहा हूं दूर तूझसे, तुझे मुबारक फितरत तेरी।
देखना है लेके जाती है, किस ओर अब किस्मत मेरी।।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर”सोनकर जी”
रायपुर, छत्तीसगढ़