फितरत
अजीब इल्म की रिवायतें बदली
इन्सान की फितरत बदल गई
न पूजा न इवादत न कोई रिश्ता बचा
सजदा भी अब सौदे की बात बन गई
न खौफ खुदा का न माँ बाप का एहसास
दौलत की भूख ही अब फितरत बन गई
कर रहा भाई भाई का कत्ल सरेआम देखो
यही इश्क मोहब्बत की शुरुआत बन गई
न कोई धर्म ईमान या मजहब बचा
ये बर्बादी इज्जत की बिसात बन गई
सुन सावधान होकर ऐ इन्सान संम्भल जरा
ये तेरी फितरत नहीं जो आजकल बन गई
तू नायब तोहफा है खुदा कुदरत को हँसी
क्यों शराफत को बेचना तेरी फितरत बन गई