फितरत
फितरत
क्या थी आदमी की फितरत कभी अब देखो क्या हो गई है
इन्सान में थी इंसानियत जो आज जाने कहाँ खो गई है
पहले पड़ोस खास होता था और दोस्ती के मायने थे
आज मोहब्बत भी जैसे कोई तिजारत हो गई है
नियामत जन्नत की जिसे मोहब्बत कहते थे
गायब वही आयतों से फिसली बात बन गई है
लोग सजदा भी खुदा करते हैं किसी खास मकसद से
आज इश्क इवादत खुदा की सौदे की बात हो गई है
बेचने लगा इन्सान आज अपने हर जज्बात को
प्रतिभा का दर्द यही की रिश्ते की कीमत हो गई है