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8 Jul 2023 · 1 min read

फितरत

फितरत

क्या थी आदमी की फितरत कभी अब देखो क्या हो गई है
इन्सान में थी इंसानियत जो आज जाने कहाँ खो गई है

पहले पड़ोस खास होता था और दोस्ती के मायने थे
आज मोहब्बत भी जैसे कोई तिजारत हो गई है

नियामत जन्नत की जिसे मोहब्बत कहते थे
गायब वही आयतों से फिसली बात बन गई है

लोग सजदा भी खुदा करते हैं किसी खास मकसद से
आज इश्क इवादत खुदा की सौदे की बात हो गई है

बेचने लगा इन्सान आज अपने हर जज्बात को
प्रतिभा का दर्द यही की रिश्ते की कीमत हो गई है

16 Likes · 8 Comments · 969 Views
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