फितरत
उन्हें हर मुस्कुराहट दी मैंने,
अब मेरी क़िस्मत रोने लगी।
उनको दुनियाभर की दुआएँ दी मैंने,
अब बद्दुआओं में मेरी क़ीमत लगने लगी।
उन्हें महफ़िल सौंपी मैंने,
अब तन्हाई मेरी खिदमत में आ गई।
गुस्सा नहीं आता था मुझे,
अब गुस्सा करना मेरी फितरत हो गई।
✍️सृष्टि बंसल